चाणक्य नीति (हिंदी में) for Android
चंद्रगुप्त मौर्य के महामंत्री के रूप में चाणक्य इतिहास के एक ज्योतिर्मय नक्षत्र हैं। चाणक्य ने अपने अनुभव और ज्ञान के आधार पर चाणक्य नीति की रचना की। उसी नीति शास्त्र (Chanakya Niti for Students) से यहां पर विघा तथा विघयार्थीयों के विषय में चाणक्य के विचारों को रखा जा रहा हैं।
'काम, क्रोध, लोभ, स्वाद, श्रृंगार (रति) कौतिक (मनोरंजन), अतिनिद्रा एवं अतिसेवा- विघा की अभिलाषा रखने वाले को इन आठ बातों का त्याग कर देना चाहिये।'
काम का भाव, स्वाद की लिप्सा, रति का आनन्द और मनोरंजन का आकर्षण इतना प्रबल होता है कि यह किसी भी कर्तव्य के पालन में बाधक बन जाता है। मन हमेशा इनकी ओर भागता है। इसी प्रकार अतिनिद्रा समय नष्ट करती है, क्रोध मस्तिष्क को असंयत कर देता है, लोभ से भी ध्यान लक्ष्य से भटक जाता है और अतिसेवा (गुरू की) से लक्ष्य का अभ्यास करने का समय ही नहीं मिलता। अतः आचार्य चाणक्य की दृष्टि में किसी विघार्थी के लिए ये आठों आचरण त्यात्य हैं।
'सुख की अभिलाषा रखने वालों को विघा प्राप्ति की आशा का त्याग कर देना चाहिये, विघार्थी को सुख की आशा का त्याग कर देना चाहिए। सुखार्थी के पास विघा कहां, विघार्थी को सुख कहां?'
यहां सुख से तात्पर्य भौतिक एवं सांसारिक सुख है। यह सुख की तृष्णा इतनी आकर्षक होती है कि मस्तिष्क को किसी विषय पर एकाग्र नहीं होने देती। विघा की प्राप्ति में मनन करना होता है, उस पर एकाग्र होना पड़ता है। अतः सुख एवं विघा दोनों एक साथ प्राप्त नहीं किये जा सकते। विघार्थी को चाहिये कि वह सुख का त्याग करके ही विघा की प्राप्ति का उघोग करे।
'मांसभक्षी, मधप और मूर्ख व्यक्ति से सभी सज्जन पुरूष दूर रहते हैं, क्योंकि मनुष्य रूप में दिखने वाले ये लोग वास्तव में पशु ही होते हैं, जो अपने भार से पृथ्वी को आक्रान्त करते रहते हैं।'
यहां विघा की महत्ता को व्यक्त करते हुए आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मूर्खों से सभी सज्जन पुरूष उसी प्रकार दूर रहते हैं, जिस प्रकार मांसाहारी और मधप से, क्योंकि मूर्ख का मस्तिष्क विघा के अभाव में पशुवत् रहता है, मांसाहारी का मस्तिष्क हिंसक हो उठता है और मधप का मस्तिष्क ठिकाने नहीं रहता। इनका साथ सदा खतरनाक होता है, इसलिए सज्जन पुरूष इनकी संगति नहीं करते।
Acharya Chanakya was a skilled politician of his time. Despite being born in an ordinary family on the strength of his political skills, he became the founder of the Maurya Empire.General Secretary of Chandragupta Maurya, Chanakya history as a shining constellation. Chanakya Chanakya policy based on their experience and knowledge created. The same ethic (Chanakya Niti for Students) and Vigyarthyyon Viga on here about Chanakya's ideas are being put.
'Lust, anger, greed, flavor, make up (Rati) Kautik (entertainment), hypersomnia and having a desire to Viga Atisewa- these eight things should be abandoned. "
The sense of work, lust of taste, fun and entertainment attractions of blood is so strong that it becomes an obstacle to the observance of any duty. He runs for the mind always. Similarly, time is destroying hypersomnia, anger brain gives effusive, greed and Atisewa also deviates from the target (the teacher) do not have the time to practice the target. So in terms of Acharya Chanakya Vigarthy Tyaty conduct these eight are for.
"The desire of happiness to those who want to abandon the hope of achieving Viga, Vigarthy abandon the hope of happiness. Where to apolaustic Viga, where Vigarthy pleasure? '
It refers to the physical pleasures and worldly happiness. The desire for happiness is so attractive that slows brain converge on a topic. Viga achieve is to contemplate, it has to be concentrated on. Viga together so well and can not be obtained. Vigarthy should be on the attainment of happiness by sacrificing the Viga to industry.
'Carnivore, and SOT Mdp gentleman, stay away from all man-looking as they are actually animal, keep your weight Akrant earth. "
Echoing the importance of Viga Acharya Chanakya says the gentleman, so stay away from fools, as the carnivorous and Mdp because of stupid brain in the absence of bovine Viga remains of carnivorous brain becomes violent Mdp and whereabouts of the brain does not. They are always dangerous with the gentleman, so they do not have consistency.